श्री गरुड़ को ज्ञान प्राप्ति

परम अनुभूति क्षण है, राम जन मन में।

महाभावी हुए गण,  हेतु पावन    में।।


सुनें ध्यानानुरागी,  आर्ष वाणी  को,

परमपद जीव  हित है,आत्म साधन में।


अहं हो जब उरग को, काग श्री वाचें,

कथा श्री राम सिय की,भाव गायन  में।


विरल तन  कौन जग में, स्वामि ये कह दें

"महत्तम  है मनुष तन ही,मोक्ष कन कन में।"


महामन,कष्ट है क्या, बोध  दें मुझ को,

"न हो संवेदना तो,   प्राण वेेदन  में।"


तपी उपकार ही करते, कहें श्री खग,

"छली हिंसक बनें तो, बुद्धि  विरजन में।"


तजें माया, जपें प्रभु नाम, जब कहते,

गरुड़  भ्रम मुक्त होते, मद निवारन में।


मीरा भारती,

पटना, बिहार।