ये तन्हाईयां

मुझसे बातें करती है मेरी ये तन्हाईयां

खट्टी-मीठी यादों की लेकर परछाइयां

स्वयं से ही साक्षात्कार कराती अक्सर

ढूंढकर लाती ज्यों सागर सी गहराईयां


सुनहरे स्वप्न की दुनिया में कल्पनाओं से

यथार्थ के धरातल पर अक्श के बनने से

बनाती मिटाती रही उम्रभर ही जिनको मैं

आज भी उभरकर गुजरती कुछ निशानियां 


मन में उमड़ते उद्गारों को उकेरती रही सदा

कभी कविता तो कभी किसी की कहानियां

धागें बुनती रही प्रीत के तन्हाइयों में बैठकर

पाई जीवन में मैंने कुछ और नयी रवानियां 


ताना-बाना ए जिंदगी कहां मुझे लेकर आया

मिलते बिछड़ते रिश्तों की यादें संग में लाया

भूल नहीं पाती मैं हृदय में स्पंदित अहसास

मुझको घेर कर बैठी है फिर मेरी ये तन्हाईयां


स्वरचित एवं मौलिक

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश