ये नज़ारे

ये नज़ारे क्यों बदला-बदला

सा अब नजर, आने लगा है

जहाँ पतझर था, सन्नाटा था

अब यहाँ बहार आने लगा है।


कभी ये फुल चमन कलियाँ

बेनूर, मायूस, नजर आते थे

मंजर वीराना,रेगिस्थान था

अब मधुबन सा,मुस्क़ाने लगा है।


कभी तो जुदाई का साया था

कभी तो ये मौसम बेईमान था

     ये मौसम भी बेरहम लगता था

     अब ये खुशगवार होने लगा है।

क्यो जहाँ, जहन्नुम लगता था

क्यों यहाँ तन्हाईयाँ लगती थी

     वह बीते लम्हात क्यों डराते थे

     अब लम्हें जन्नत लगने लगा है।


कभी नज़ारे उदास लगती थी

और फिजा बेरंगीन हो गई थी

      अब मौसम लेने लगी अंगड़ाई

      क़ायनात गुलजार होने लगा है।


अशोक पटेल"आशु"

मेघा,धमतरी(छ ग)

९८२७८७४५७८