सुलगता मध्यपूर्व

यूं तो इजराइल-फिलिस्तीन के बीच पिछली सदी से चला आ रहा संघर्ष एक ऐसा संकट है जिसका कोई ओर-छोर नजर नहीं आता। लेकिन गत शनिवार को फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास ने जिस क्रूरता से भयावह हमला इजराइल की संप्रभुता को रौंदते हुए किया, उससे मानवता शर्मसार हुई है। निस्संदेह, यह एक आतंकी हमला था जिसमें सामूहिक हत्याएं हुई व महिला-पुरुषों को अपहृत किया गया। 

ये घटनाक्रम जहां अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है, वहीं इंसानियत को शर्मसार करने वाला भी है। लेकिन खाड़ी में वर्चस्व की जंग व धार्मिक अस्मिताओं के चलते यदि यह विवाद तूल पकड़ता है तो परिणाम पूरी दुनिया के लिये घातक होंगे। क्षेत्र में युद्ध जैसे हालात के चलते कच्चे तेल के दामों में वृद्धि हुई है, जिसका असर पूरी दुनिया पर होना हैं। 

वहीं इस संकट के चलते मध्यपूर्व में अमेरिकी हस्तक्षेप की संभावनाओं को भी विस्तार मिला है, जिसने इजराइली हितों की पूर्ति के लिये एक समुद्री युद्धपोत भेजा है। लेबनान में सक्रिय अन्य इस्लामी मिलिटेंट ग्रुप हिजबुल्ला का इजराइल पर मोर्टार से हमला हालात के चिंताजनक होने की ओर इशारा कर रहा है। वहीं फिलिस्तीनी आतंकी गुट हमास के समर्थन में ईरान के खुलकर आने के बाद क्षेत्र में तनाव में वृद्धि हुई है। 

यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को कहना पड़ा कि इजराइल का विरोधी कोई देश मौके का फायदा उठाने का प्रयास न करे। 

बहरहाल, ऐसे वक्त में जब एक साल से अधिक समय से रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है, चिंता बढ़ गई है कि इजराइल-हमास संघर्ष का तनाव अन्य देशों के साथ युद्ध में तब्दील न हो जाए। वहीं दूसरी ओर इस हमले को आतंकी हमला मानते हुए भारत ने इस्राइल के पक्ष में एकजुटता जाहिर की है। विगत में भारत भी ऐसे ही आतंकी हमलों से दो-चार हुआ है। 

दूसरी ओर हाल के वर्षों में भारत के इजराइल के साथ संबंध खासे गहरे हुए हैं। वहीं अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मानते हैं कि हाल के वर्षों में सऊदी अरब समेत अन्य देशों से इजराइल के सामान्य होते रिश्तों को पटरी से उतारने के मकसद से हमास ने इजराइल पर हमला बोला है। ताकि अल-अक्सा मस्जिद व अन्य धार्मिक मुद्दों के आधार पर मध्यपूर्व में ध्रुवीकरण किया जा सके। बहरहाल हमास के हमलों के बाद फिलिस्तीनी इलाके गाजा पट्टी व अन्य इलाकों में इस्राइल के हमले जारी हैं।

इजराइल के सामने हमास द्वारा बंधक बनाये गये अपने नागरिकों को छुड़ाने की चुनौती भी है। जाहिर है हमास इन इजराइलियो को एक ढाल के तौर पर इस्तेमाल करेगा। उसकी कोशिश होगी कि इजराइल की जेलों में बंद हजारों फिलिस्तीनी बंधकों की रिहाई के लिये सौदेबाजी की जा सके। वहीं इजराइल के भीतर हमलों को रोक पाने में सरकार की विफलता को लेकर भी रोष है। कहा जा रहा है कि इस सुनियोजित हमले की भनक दुनिया में विख्यात इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को क्यों नहीं लगी।

 जबकि यह हमला एक लंबी तैयारी का ही परिणाम बताया जा रहा है। बहरहाल, दुनिया के जिम्मेदार देशों को कोशिश करनी चाहिए कि यह टकराव किसी बड़े संघर्ष में तब्दील न हो जाए। वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि हमास का यह हमला ईरान व इजराइल के लगातार खराब होते संबंधों की प्रतिक्रिया है। साथ ही इस्लामिक जगत के नेतृत्व की दावेदारी करने वाला ईरान यह संदेश देने का प्रयास कर रहा है कि जहां सऊदी अरब इस्राइल से संबंध सामान्य बना रहा है, वहीं ईरान उसके खिलाफ खड़े होकर हमास को समर्थन दे रहा है। 

ऐसे में उम्मीद है कि सऊदी अरब यह संदेश देने का प्रयास करेगा कि वह फिलिस्तीन के अधिकारों के पक्ष में तो है मगर आतंकवाद के खिलाफ है। तभी उसने तनाव को खत्म करके नागरिकों की सुरक्षा के लिये संयम अपनाने की बात कही है। साथ ही फिलिस्तीनियों के वाजिब अधिकारों की वकालत की है। बहरहाल, हमास के हमले से दुनिया में फिलिस्तीन समस्या के दो-राष्ट्र समाधान की कोशिशों को झटका लगेगा। इजराइल की कोशिश होगी कि वह दुनिया में अपनी कार्रवाई को आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई बताए।