उत्कृष्ट लेखनी निकृष्ट चरित्र,
विखंडित लोगों में उलझा,
आज साहित्य का भविष्य।
सत्य का साक्षात्कार समझ
पूजी जाती थी लेखनी कभी,
मिथ्या आवरण से हुई आकृष्ट।
कई जालसाज हैं यहाँ भी,
विशद सुविचार लिए हुए,
पर मन मलिनता का पृष्ठ।
काश!हृदय के पाट बंद कर
लिख पाती मैं भी कुछ कभी,
काश!शब्द और भाव के अंतर
समझ पाती मैं भी कभी,
काश!भ्रमित जग का कण कण
पहचान पाती मैं भी कभी।
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )