उस नशे का कोई मोल नहीं जो
किसी और दुनिया की सैर न कराए,
दूसरी दुनिया का एक एक बंदा
अपनी बात लेकर न टकराए,
मैंने भी किया है नशा
जिस नशे में मैं चूर रहता हूं,
जिसका लिए हरदम सुरूर रहता हूं,
इस नशे के कारण मैंने
एक और बहुत बड़ी दुनिया जाना,
जहां बना लिया अपना ठिकाना,
वो दुनिया है बेबस मजबूर लोगों का,
पाई पाई के लिए कशमकश करते
भूखे,प्यासे मजदूर लोगों का,
जिन्हें नहीं पता अपना हक़,
लिए घूम रहे हैं माथे पर मिथक,
खा रहा है कोई जिनके हिस्से की रोटी,
जिन्हें पड़ रहा बार बार सीना लंगोटी,
उन्हें खबर ही नहीं
बहुत लोग खड़े हैं चोरी करने
किसी और की टोंटी,
हां है मुझे लोगों को जागरूक करना,
क्योंकि अभी भी है मुझमें नशा हावी,
साहू-फुलेवाद का,
अम्बेडकरवाद का,
पेरियारवाद का,
संविधानवाद का,
और यहीं नशा मुझे सैर कराता है,
एक और दुनिया में।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग