जिर्णोद्धार के अभाव में खण्हर में तब्दील होती शिवपुर की मठिया

(गौरीशंकर पाण्डेय सरस)

अष्टधातु की वेशकीमती मूर्तियों को आज भी है किसी सुयोग्य मठाधीश की तलाश-ग्रामीण।

मठिया की जमीन पर आज भी है लोगों का अनाधिकृत कब्जा-मंदिर के पुजारी।

जखनियां/गाजीपुर। तहसील जखनियां का चतुर्दिक ईलाका आश्चर्य किंतु सत्य कथाओं से भरा पड़ा है। गंवई मिट्टी की सोंधी खुशबू ने ईश्वर शक्ति के प्रति मानव मन को खूब रिझाया।और श्रद्धा भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।वेदांग दर्शनों के मुताबिक हमारे  देवस्थान मानव मन की शांति और संकट समाधान के वह अलौकिक सोपान हैं जहां  मानव मन की कटुता द्वेष वैचारिक मतभेद की सीमा खत्म हो जाती है।और ज्ञान वैराग्य भगवद्भक्ति के सारे कपाट खुल जाते हैं। ऐसा होने पर धर्म के प्रति मानव मन का झुकाव बढ जाता है। परिणामस्वरूप निम्न से लेकर भव्य मंदिर मठों का निर्माण संभव हो पाता है।

जिसका उदाहरण उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद मुख्यालय से करीब पैंतीस कि०मी०दूर  तहसील एवं विकास खंड जखनियां क्षेत्र के दो विश्व विख्यात सिद्ध पीठों (भुड़कुड़ा और हथियाराम)की चर्चित सिद्धि परम्परा की शोहरत के बीच एक अति प्राचीन मठिया जो सिद्धस्थली  शिवपुर की  मठिया के नाम से जानी जाती है।जिसमें भगवान राम लक्ष्मण और सीता सहित भगवान शंकर की वेशकीमती अष्टधातु की मूर्तियां  विद्यमान हैं। लगभग पांच सौ साल पुरानी मठिया जीर्ण शीर्ण अवस्था में होने के साथ साथ खंडहर में तब्दील ध्वंशावशेष के रूप में आज भी अपने पुराने दिनों की याद ताजा कर अपने दुर्दिन पर आंसू बहाने को विवश है। 

उचित देखभाल के अभाव में जहां मठ की मज़बूत दीवारें भरभरा कर गिर रही हैं वहीं प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां खुले आसमान के नीचे दैनिक पूजा पाठ के अभाव में उपेक्षित हैं। स्थानीय मंदिर के वर्तमान पुजारी ने  मठिया की भूमि पर लोगों द्वारा अनाधिकृत कब्जा होने के चलते मठिया की गरिमा धूलधूसरित होने का भी आरोप  लगाया।अपने मनोवांछित कार्यों में सफलता मिलने पर सफलता का श्रेय मठिया में स्थापित अति प्राचीन मूर्तियों का कृपा प्रसाद मानते हुए गांव के युवाओं तथा जागरूक युवा ग्राम प्रधान द्वारा मठिया स्थित नंदेश्वर मंदिर के चबूतरे का जिर्णोद्धार अपने खर्च पर कराया तो गया है लेकिन मंदिर की साफ-सफाई , मरम्मत ,रंग-रोगन आदि का पूर्णतः अभाव‌ है। जिसकी चर्चा गांव वालों की जुबान पर  तैरती नजर आती है। 

स्थानीय लोगों ने बताया कि कई बार तो मठिया में स्थापित अष्टधातु की बेशकीमती मूर्तियां चोरों ने चोरी कर लिया। परंतु वैदिक मंत्रोच्चार के बीच स्थापित मूर्तियों के कोप भाजन से कोई रोक नहीं पाया । चोरी करने वालों में किसी के आंख की रोशनी सदा सदा के लिए चली गई तो कोई असाध्य रोग से पीड़ित होकर यातनाएं भुगतने को बाध्य हुआ।  चोरों द्वारा मठिया की खंडित मूर्तियां आज भी वैसे ही पड़ी हुई हैं।कभी अपने प्रारंभिक दौर से लेकर पिछले पचास सालों तक सुबह‌-शाम बजते घंटे घड़ियाल, पूजा पाठ और आरती  तथा भक्त श्रद्वालुओं के हुजूम से भरी रहने वाली मठिया आज विरान दिखाई देती है। 

मठिया के चारो ओर उगे जंगली विलायती पौधे परिसर को डरावना बना कर रख दिए हैं। जिससे रात  तो रात दिन में भी जाने पर डर लगता है। विदित हो कि उक्त मठिया का इतिहास प्राचीन होते हुए भी अप्राप्य है। किंबदन्तियों और दंत कथाओं के अनुसार शिवपुर की मठिया लगभग पांच सौ साल पुरानी बताई जाती है।जबकि मठिया की दीवारों के ध्वंशावशेष में प्रयुक्त ईंट सन्1846समय काल की पुष्टि करतीं हैं।जन चर्चाओं के मुताबिक  आज से पांच सौ साल पहले मठिया के चारों तरफ का कोसों दूरी का इलाका गहन जंगलों भरा पड़ा था। 

जहां हिंसक वन्य जीवों का वर्चस्व था। जहां अचानक अपने पद यात्रा के दौरान भ्रमण करते हुए वाराणसी स्थित शिवपुर के  एक संन्यासी का आगमन हुआ नाम था पृथि यति। अपनी सिद्धि के निमित्त उचित स्थान मानकर यहीं ठहर गए।और अपनी साधना सिद्धि में  लग गए। धीरे धीरे अपने आदर्श आचार व्यवहार के कारण जन चर्चाओं में इस कदर छा गए की सुदूरवर्ती ग्राम्यांचलों में  लोगों के पांव पूज्य बन गए। उक्त सिद्ध महात्मा के विचारों के समर्थन में क्षेत्रीय जन सहयोग से  एक देवधाम का प्रतिमान खड़ा किया गया जो आगे चलकर कीर्तिमान बन गया। 

जिसमें विद्वान ब्राह्मणों के वैदिक मंत्रोच्चार एवं दुग्ध गंगा जलाभिषेक के बीच राम लक्ष्मण सीता सहित भोलेनाथ की वजनदार बेशकीमती अष्टधातु की  मूर्तियां स्थापित की गईं। मान्यता है कि सिद्ध पीठ  शिवपुर मठिया पर बुरी नजर रखने वाले कभी सुकून भरी जिंदगी नहीं जीते । मठिया के पास मौके पर लगभग दस बीघा जमीन उपलब्ध होते हुए भी मंदिर में दिया बाती की समस्या बनी हुई है। गांव वालों के मुताबिक मठिया को किसी सुयोग्य विद्वान मठाधीश की तलाश विगत तीन दशकों से है।

 जिससे मठिया का पुनरुद्धार तथा खोई प्रतिष्ठा लौट सके।और मठिया की जबरन अधिग्रहीत जमीन दबंगों के कब्जे से मुक्त करा सके। मठिया के पिछले हिस्से (जो कभी रौनकदार अतिथि कक्ष, भण्डारगृह और शिष्यों के रहने का स्थान हुआ करता था)आज जमींदोज हो चुका है जिसके पास लगभग पचास फिट गहरा कुआं आज भी मौजूद है जिसमें किंवदंतियों और दंत कथाओं  के अनुसार अकूत धन संपत्ति पड़ी हुई हैं साथ ही पुराने जमाने के हथियारों के भी दबे होने की आशंका है।जिसपर लुटेरों की कुदृष्टि प्रायः पड़ी रहती है। बावजूद सफलता हाथ नहीं लगती।मठ के दक्षिण तरफ स्थित विशाल सरोवर जिसमें कभी लोग आकंठ डुबकी लगाकर पाप प्रक्षालन किया करते थे आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है।

 गांव की जागरुक जनता के मुताबिक विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्षस्थ नेताओं का मठिया पर मत्था टेकना तो समय समय पर होता रहता है । मगर ,मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं ,वाली कहावत चरितार्थ होती रहती है। मठिया के प्रथम परम पूज्य सिद्ध संत महंत स्वामी पृथि यति महाराज ने अपने जीवन के शेष आखिरी दिनों में जीते जी समाधि लेकर जो अपने तपोबल का  प्रमाण प्रस्तुत किया आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है। जिनकी समाधि आज भी मठ के परिसर में समाधि बाबा के नाम से विद्यमान है। जिनके समाधि स्थल का हालिया नव निर्माण गांव के युवाओं द्वारा आपसी सहयोग से  कराया गया है।