कहो कहांँ से आई हो।
अप्रतिम है रूप तुम्हारा,
सबके मन को भाई हो।
जब जब देखूं मैं तो तुझ को,
खोया सा रह जाता हूं।
कैसे वर्णन करूं रूप का,
देख चकित हो जाता हूं।
यौवन तुम्हारा देख देखें,
कामदेव भी सोचे रहा।
कैसी सुंदर घड़ी में,
विधाता ने तुमको रचा।
गौर वर्ण है निर्मल चांदनी,
नैन तुम्हारे कजरारे से।
सोने सी काया है तेरी,
देख देखकर सब हैं हारे।
अधर रसीले कमल पंखुड़ी,
गर्दन तेरी सुराही सी।
जब भी देखूं रुप तेरे को,
खोया सा रह जाता हूं।
लंबे लंबे केश है तेरे,
मानो धरा को चूम रहे।
वाणी तेरी सरल सुखद,
कानों में अमृत घोल रही।
यौवन तेरे की बात कहूं क्या,
हाथों में चूड़ी की खन खन।
कटी पर तेरे तगड़ी बंधी,
पैरो मे तेरे पैजनिया।
घूंघट से ऐसे शर्माए,
देख देख दिल की धड़कन बड़ी
कभी रंभा कभी लगी मेनका,
या है कोई स्वप्न सुंदरी।
देख-देख ललचाए मन मेरा,
मन में मेरे तो तू ही बसी।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा