मजदूर


युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

बदल   दी   मैंने   दुनिया,

दुनिया की  मैली  तस्वीर,

बदल   दिया   हर  कोना,

बस  ना  अपनी तकदीर।

बेच   दिया   अपना  श्रम,

देदी खुशियां  ले के  गम। 

मैं   रहा  सदैव  अकिंचन,

निज किया ना  कोई श्रम,

है  धरा को  स्वर्ग  बनाया,

दुल्हन  सा  रोज  सजाया,

मैं रहा  सदा  ही  श्यामल,

श्रृंगार   नहीं   कर   पाया,

किया  रोज द्वंद रवि  संग,

जलता है  पेट  व तन-मन,

नहीं  हाथ  रुके  कभी मेरे,

सदा  लक्ष्य  गले   लगाया,

कर पथ प्रशस्त  कंटक में,

शिखर  तक  मार्ग  बनाया,

नहीं चल पाया दो पग भी,

पीछे   से   बस   मुस्काया,

तोड़ा   पत्थर  का   सीना,

कितने   ही   रूप   बनाए,

नहीं   तोड़   सका जंजीरे,

रो   कर  भी  ना  रो  पाए,

महलों, मंज़िलो  का कर्मी,

नित नूतन  कला  दिखाए,

फिर भी  बरखा  की  रातें,

टूटे    छप्पर   में   बिताए,

विपरीत नियम प्रकृति का,

मजदूर   ही  महल  बनाए,

ओढे धूप की भीगी चादर,

खुश होकर  सूखता जाए।


महिमा तिवारी,वरिष्ठ गीतकार कवयित्री

व शिक्षिका,प्रा0वि0-पोखर भिंडा नवीन,

रामपुर कारखाना-देवरिया,उत्तर प्रदेश