वक़्त

वक़्त भी न जाने कैसे

इम्तिहान ले रहा है

यूँ अपनों को अपनों से

जुदा कर रहा है

छाया है मौत का ऐसा तांडव

हर पहरा हो गया ज़िन्दगी पर भारी

रोज़ टूट रही आस कोई एक

रोज़ छूट रहा रिश्ता कोई एक

रोज़ यूँ दर्द नया कोई एक 

 रोज़ नाम कोई एक 

रोज़ चेहरा कोई एक

हो रहा जुदा किसी अपने से

वक़्त भी न जाने कैसे

इम्तिहान ले रहा है

यूँ बिछा जाल मौत का

हर घर, हर बस्ती, हर गांव, हर नगर, 

हर प्रदेश, हर नगर, हर राज्य

सिसक रही ज़िन्दगीयाँ यूँ होकर मजबूर

मानो प्रलय ही आ गया हो

बन कर ऐसा भंवर जो

बस निगलता ही जा रहा

हर किसी को अपने आवेग में

वक़्त भी न जाने कैसे

इम्तिहान ले रहा है

मचा हाहाकार .......

जिसका अंत न जाने होगा कब और कैसे??

हैरान परेशान है श्मशान भी

आखिर ज़िन्दगीयों को लगी

नज़र किस की जो 

रुक ही नहीं रहा कहर ये 

  बीत गए पहर कितने।।

....मीनाक्षी सुकुमारन

     नोएडा