इंसान क्यों, मुखौटा लगाने लगा है?

इंसान अपनी फितरत क्यों बदलने लगा है

एक होकर दो-दो, भूमिका निभाने लगा है

जो वह  दिखता है, सच में वह वही नही है

वह तो कोई और है,जो सच छुपाने लगा है।


लब्जों में मीठास भी है दिल जितने लगा है

अपनेपन का भी ये अहसास कराने लगा है

दिलेरी ऐसा है कि कोई भी धोखा खा जाए

कोई चुक न हो, ऐसा रिश्ता जताने लगा है।


दिलों से अब अहमियत, खत्म होने लगा है

स्वार्थ और मतलब  बेखौप, पनपने लगा है

संवेदना  मानवीयता  अब, महत्वहिन हुआ

अमानवीयता का अब, महत्व बढ़ने लगा है


इंसान चहरे पे क्यों, मुखौटा लगाने लगा है

मन के दर्पण को क्यों, अब छिपाने लगा है

इंसान कहें तो कहें, किसको,अपना,पराया

पराया तो पराया है अपना ही छलने लगा है


अशोक पटेल "आशु"

मेघा,धमतरी(छ0 ग0)

9827874578