कर्मफल कैसा होगा

बादल से भी तो नही बरसात हुई

बरिश के बूंदें भी अधर की ना हुई

जीवन पड़ाव को कैसे समझ पाये

मन की उलझन को कैसे समझाये


जीवन भी अब बेमानी ही लगता है

सपनों की ही तो कहानी लगता है

हकीकत इसकी कैसे समझ पाये

मन की उलझन को कैसे समझाये


उलझनो मे हम रोज ही सुलगते है

तक़रार तो कभी प्यार मे उलझते है

उलझनों से कोई कैसे भी बच पाये

मन की उलझन को कैसे समझाये


जल में रहकर अब प्यासे रहते है

कहानी हकीकत की ही कहते है

जीवन में कैसे कोई परिवर्तन लाये

मन की उलझन को कैसे समझाये


कोई राज छुपा हो मन के अंदर में

जब लगी आग हो जब समन्दर में

कोई कैसे अपना अब घर बचाये

मन की उलझन को कैसे समझाये


ना जाने कब ये सवाल हल होगा ?

क्या आज से अच्छा ही कल होगा

क्या कर्म की लकीर बदल हम पाये

मन की उलझन को कैसे समझाये


कर्म कर रहे है कर्मफल कैसा होगा

क्या कर्म से जीवन संघर्ष तय होगा

इसी संसय में उम्र भी बीत ना जाये

मन की उलझन को कैसे समझाये


रचनाकार

प्रमेशदीप मानिकपुरी

आमाचानी धमतरी छ. ग.

9907126431