इक बात कसकती मन मेरे, किसने ऐसी रीत बनाई |
बेटा कहलाता है अपना, बेटी रहती सदा पराई ||
पानी की छप-छप खेले है,दोनों ही आँगन में चहके |
बेटा कुलदीपक कहलाता,बेटी से सब गलियाँ महके ||
तेरा घर नहीं यहाँ पर है, हरपल सबने बात बताई |
बेटा कहलाता है अपना, बेटी रहती सदा पराई ||
गुणवान बनाने के खातिर , माँ ने कोई कसर न छोडी |
चढ़ जाये हल्दी हाथों पर, रही जोड़ती कौड़ी कौड़ी ||
कहे पराया धन मुझको क्यूँ,क्यूँ फिर झूठी प्रीत लुटाई |
बेटा कहलाता है अपना, बेटी रहती सदा पराई ||
इंदु सदा खुश रहो तुम यही,इच्छा माँ सी की है प्यारी |
अजय अजेय रहे रघुवर जी, गूँजे मन हरपल किलकारी ||
बेटा सम बेटी भी प्यारी, हमने जग की रीत निभाई |
बेटा कहलाता है अपना, बेटी रहती सदा पराई ||
कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश