यह समय नहीं आरोपों का,
गलती पर उठते कोपों का।
उत्तर देना है तनी हुई,
दुश्मन की शातिर तोपों का।।
बैठेंगे फिर बतिया लेंगे,
बाहों में भर गफिया लेंगे।
पर आज अगर हम चूके तो,
दुश्मन हिमगिरि हथिया लेंगे।।
सीमा पर डटे जवानों की,
भारत मां के दीवानों की।
हिम्मत को साठ गुना करना,
अलबेलों की मस्तानों की।।
चहुँ ओर शोर है नारों का,
नक्कारों का मक्कारों का।
मतलब परस्त बटमारों का,
मुरदारों का गद्दारों का।।
गम्भीर विषय है धीर धरो,
उपहास हास को चीर धरो।
यदि ऐसा नहीं किया तो फिर
परिणाम सुनो शमशीर धरो।।
परिहास कलंकित कर देगा,
उपहास कलंकित कर देगा।
वाणी पर संयम रखा न तो,
इतिहास कलंकित कर देगा।।
पीढ़ियां सुनेंगी जब निन्दा,
कोसेंगीं मर जाता जिन्दा।
जयचंद सरीखी जाफर सी,
कालिख कर देगी शर्मिन्दा।।
अन्तरतम तक में सुलग आग,
जब धधक रही हो जाग जाग।
सुन ध्वंस राग खटराग त्याग,
अपनाने बैठे वीतराग।।
गृह युद्ध नहीं ग्रह युद्ध करो,
कारा को कर से शुद्ध करो।
जीवन की जय लिख दो पहले,
फिर खुद को गौतमबुद्ध करो।।
इसलिए उठो स्वर में स्वर दो,
सीमा के प्रहरी को वर दो।
आहुति की वेदी पर हैं जो,
उनको निश्चिन्त निडर कर दो।।
कह दो कि समय हुंकारों का,
बस आग और अंगारों का।
तू - तू मैं - मैं का नहीं समय,
है समय धनुष - टंकारों का।।
यह महाप्रलय की बेला है,
भूखण्ड वलय की बेला है।
साहस की अग्नि परीक्षा है,
लय और विलय की बेला है।।
जल्लादों को जल्लाद कहो,
फौलादोँ को फौलाद कहो।
दुश्मन को मुर्दाबाद कहो,
भारत को जिन्दाबाद कहो।।
बन मृत्यु द्वार आ धमकी है,
तलवार धार धर चमकी है।
दुश्मन गुर्राया है फिर से,
परमाणु बमों की धमकी है।।
पल पल खल जहर उगलता है,
सुन कर धक् धैर्य उछलता है।
किसतरह हृदय को करूँ शान्त,
नस नस में खून उबलता है।।
यों तो हम शान्ति मसीहा हैं,
गीतों से भरे पपीहा हैं।
कोई अरि दिखलाए उंगली,
उस रिपु के लिए मलीहा हैं।।
इसलिए देश के वीरों का,
मानवता रक्षक हीरों का।
आवाहन करता हूँ खुलकर,
योद्धाओं का रणधीरों का।।
हे तरुण ! तनिक हुंकार भरो,
रणचण्डी का उच्चार करो ।
भारत माता का धरो ध्यान,
अरि की छाती पर वार करो।।
हे अग्निपुत्र ! अद्भुत् चरित्र,
तू यत्र तत्र सर्वत्र मित्र।
भारत माता का चरण राग,
कर दे विचित्र भू को पवित्र।।
हे धीर - वीर ! तू निर्विवाद,
उठबजा बिगुल कर सिंह नाद।
होने दे अरि का आर्त्तनाद,
भीषण निनाद कर शंखनाद।।
डगमग - डगमग धरती डोले,
विकराल काल मुंह को खोले।
नक्षत्र टूटने लग जाएं,
बस कर बस कर अम्बर बोले।।
इस तरह धूम्र तूफान उठा,
छा उठे हृदय में कुपित छटा।
जो हैं आतंक समर्थक सब,
उनकी संख्या हर प्रहर घटा।।
क्षर आदि - आदि को नाप उठे,
इति नये सृजन को भाँप उठे।
फिर एक देश की क्या बिसात,
ब्रह्माण्ड समूचा कांप उठे।।
करुणा से दूर कहर बनकर,
क्रूरता कसाई सी भरकर।
दुश्मन पर टूट पड़ो बोलो,
बम बम जय महाकाल हरहर।।
कर उठे दुश्मनी चीत्कार,
बस त्राहि-त्राहि की हो पुकार।
हा - हा खाए गिड़गिड़ा उठे,
हर बैरी मुंह से बार - बार।।
हे वीर ! हाथ से जला दिखा,
उस शौर्य शक्ति की अग्निशिखा।
जिस पर रण जयी शहीदों का,
अजरत्व लिखा अमरत्व लिखा।।
ऐसी भीषण ज्वाला बरसा,
बम तोप बाण भाला फरसा।
इस तरह चला कर अस्त्र शस्त्र,
दुश्मन को कुछ ऐसा तरसा।।
बड़बड़ा रहे भड़भड़ा उठें,
तड़तड़ा रहे तड़पड़ा उठें।
फड़फड़ा रहे हड़बड़ा उठें,
गड़गड़ा रहे गिड़गिड़ा उठें।।
विप्लव को कविता सत्य करे,
ज्वाला में ज्वाला गत्य करे।
षोणित की सरिताएं फूटें,
जब मृत्यु ताण्डव नृत्य करे।।
आभास बदलने वाला है,
विश्वास बदलने वाला है।
भूगोल बदल जायेगा फिर,
इतिहास बदलने वाला है।।
अमरत्व फलेगा फूलेगा,
संहार जीत को भूलेगा।
जब खण्ड खण्ड जुड़ कर अखण्ड,
भारत भारत को छू लेगा।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर
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