बेटियाँ

घर की जीनत फुलों की तरह 

होती हैं बेटियां...

एक नहीं दो दो कुलों को संवार

देती हैं बेटियाँ ..........

बड़े खुश नसीब हुआ करते 

हैं वो माता और पिता........

जिनके घर जन्म लिया करती हैं

प्यारी बेटियाँ ...........

मुस्कुराती हैं घर को स्वर्ग बनाती

हैं ये बेटियाँ.........

तेरी कुदरत मेरे समझ में कुछ

आती ही नहीं हैं .............

दो घर हैं उनके मजबूर फिरभी

होती हैं बेटियाँ ................

बोझ आंखों के इन तारों को न 

समझना तुमने ..............

चिड़ियों की तरह रोज़ शोर

मचाती हैं बेटियां..........

चहचहाती हैं कूदती फिरती हैं 

आंखों के सामने ..................

मुश्ताक घर को सुनसान कर

जाती हैं बेटियाँ ...................


डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

सहज़