नीम करेले क्या जानेंगे बाबा जी की शान को,
सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को,
बाहरी बातों में आकर भूले उनके ज्ञान को,
सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को,
स्कूल के बाहर रहकर क्या तू पढ़ पाता रे,
रो रो पाठशाला छोड़ घर को चला आता रे,
याद कर झाड़ू पीछे गले थूकदान को,
भूल जा पाखंड बांटे ऐसे विद्वान को,
सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को,
मुसीबतें सह सह कर भी बस्ता उसने उठाया था,
जातिवादी ताने सुन सुन आंसू खूब बहाया था,
प्रचलित ढोंगों पर उसने उंगली प्रतिपल उठाया था,
चमत्कार को नहीं मानकर तार्किक प्रश्न लाया था,
अभावों में पढ़कर उसने कई डिग्री लाया था,
भीमराव की नजर से आ देख ले जहान को,
सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को,
ढोंगियों की ढोंग के आगे नतमस्तक होना पड़ा,
मुश्किलों से मिला हुआ अधिकार खोना पड़ा,
इतिहास रचने खातिर औलादें गंवाया था,
समता और बंधुत्व भारत को बताया था,
जातिवादी कीड़ों पर जमकर चोट लगाया था,
पांच हजार सालों का काला दौर मिटाया था,
बुद्ध से मिलकर शुद्ध हुआ वो बढ़ाया मान को,
सोच औकात अपनी और पढ़ ले संविधान को।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग