विरह गान

तेरे बिन सुनी.....लगे ये रातें है

इंतज़ार करती मेरी आँखें है (2)

हे दिकु......में तुम्हें चाहूं

में तुम्हें चाहूं

तेरे बिन सुनी.....लगे ये रातें है

इंतज़ार करती मेरी आँखें है (2)

कैसे निभाएंगे प्रीत ओ साजन

में हूँ कमीभरा, तुम हो निरंजन (2)

हे दिकु......में तुम्हें चाहूं

में तुम्हें चाहूं

तेरे बिन सुनी.....लगे ये रातें है

इंतज़ार करती मेरी आँखें है (2)

तेरी राह में आँखें है बरसी

तुजे देखने को, ये है तरसी (2)

हे दिकु......में तुम्हें चाहूं

में तुम्हें चाहूं

तेरे बिन सुनी.....लगे ये रातें है

इंतज़ार करती मेरी आँखें है (2)

कठिन है जीवन पर, संयम से रहूंगा

तुम से किया वादा, में पूरा करूँगा (2)

हे दिकु......में तुम्हें चाहूं

में तुम्हें चाहूं

तेरे बिन सुनी.....लगे ये रातें है

इंतज़ार करती मेरी आँखें है (2)

प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए


प्रेम ठक्कर "दिकुप्रेमी"

Data & Process Manager

Surat, Gujarat

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