"मेरी कविता..."

कैसी सभ्यता 

जहां हो शून्यता

दुनिया की सबसे ज्यादा 

जनसंख्या वाली देश में भी 

अकेला...

यह कैसा अकेलापन 

रिक्तता... खालीपन...

खुला आकाश... 

सूना आकाश की तरह...!

कल्पनाओं को 

कभी देते हुए भाव

कल्पनाओं से 

कभी करते हुए मनमुटाव

कभी लड़ते हैं 

कभी झगड़ते हैं...

ऐसी स्थिति में...,

गिरने लगता है 

मन में बसा 

चाहतों के दीवार ।

करने लगते हैं हम 

उन पर प्रहार ।।

उसने लगता है मन में 

ज्वार भाटा... तूफान...

बहने लगता है अक्षर... 

लिखा हुआ एक एक कर...

इन सब को चुन-चुन कर

इकट्ठा कर...

मुझे...,

गीत... कविताएं... ग़ज़ल...

लिखने का मन करता है ।

ए मेरे लिखे हुए 

अक्षरों... शब्दों... 

अल्फाजों... अनुच्छेदों...

तुम्हें मैं एक कविता की 

स्वरूप देना चाहता हूं...!

क्या तुम मेरी 

कविता बन सकती हो...!!


स्वरचित एवं मौलिक

मनोज शाह मानस

नारायण गांव,

नई दिल्ली 110028

manoj22shah@gmail.com