सुघड़ सलोनी साधिका कर फूलन श्रृंगार।
कटि गागर कर साधती पनघट को तैयार।। १
लगती है वन मालिनी कोमल कलित शरीर।
रुचिर रम्य वन को चली, भरने घड़ा अधीर।।२
जूड़े में गजरा गुथा, कर कानन गल फूल।
नजर झुका चलती संभल, चुभ ना जाए शूल।।३
सौम्य मृदुल मनमोहनी, है सृष्टि का आधार।
कृत्रिमता कुछ भी नहीं, पूर्ण प्रकृति साकार।।४
शर्मो हयात प्रतिमूर्ति, शबनम धरे कपोल।
झुकी नजर है शांत चित्त , अधरन पर नहि बोल।।५
अलका मन में रीझता, रमणी रूप अनूप।
नख से शिख तक धारती सूर्य प्रभा सी धूप।। ६
डॉ0 अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'