हिंदी गीतिका

गजबे  की  अदाकारी  है   जनाब।

'हाँ' वाले सब  सरकारी हैं जनाब।।

फाइलें  कहती  हैं,विकास हुआ है।

पर असल  में  महामारी  है जनाब।।

रहजनों को कैसी  चिंता ओ' फिक्र।

रहबरों से  उनकी  यारी  है जनाब।।

मानी  हुई  है दाल,रोटी  खा रहा हूँ।

क्या  करूँ मैं,बेरोजगारी  है जनाब।।

लहू  पीके  गरीबों का,रहबर  बोला।

हक नहीं खाते,शाकाहारी हैं जनाब।।

मेहनत  भूखी,  निठल्ली  मौज  करे।

आजकल  यही  हुश्यारी  है  जनाब।।

खुद  किया  वादा,खुद ही तोड़ दिया।

यही  सबसे बड़ी ,मक्कारी  है जनाब।।

भूखो  मर  गया,कर रहा आत्महत्या।

ये   किसकी  जबाबदारी  है  जनाब।।

यकीन मानिए  तुम्हें हलाल  ही करेंगे।

तभी  हो  रही  खातिरदारी  है जनाब।।

सत्ता  हितार्थ जनसेवक  कहलाते हो।

असल  में  ये  एक  बीमारी है जनाब।।


कृष्ण कुमार निर्माण

करनाल,हरियाणा।

9034875740