मैं धरती पर तू उड़ जा, पतंग
तेरे संग नहीं जा पाऊंगा पतंग
भला उड़ाने वाला भी कभी उड़ा है पतंग
तेरे मेरे रास्ते अलग है पतंग।
मैं तूझे ढील देता हूं तू उड़जा पतंग,
भूल मत हम एक डोर से बंधे
दो विपरीत किनारों के खिलाड़ी हैं,
मैं यहीं ठहरता, तू उड़ जा पतंग।
ऐ पतंग तू कभी ना हारना,
मेरा इशारा कभी ना टालना,
बादशाहीयत तू दिखा पतंग,
हार कर कभी लौट कर ना आना पतंग।।
-- नेहा ठाकुर " नेह " इंदौर
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