संवेदनशील सीमा

पिछले दिनों सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे का एक बयान मीडिया की सुर्खियां बना था कि ‘भारत-चीन सीमा पर स्थिति स्थिर है लेकिन बेहद संवेदनशील है।’ तब इस वक्तव्य को लेकर कयास लगाये जा रहे थे कि इस बयान के तात्कालिक निहितार्थ क्या हैं। जाहिर है इस स्थिति के चलते हम अपने सतर्कता प्रयासों को कम नहीं कर सकते हैं। पीएलए के किसी भी दुस्साहस को रोकने के लिये चौबीसों घंटे निगरानी की जरूरत महसूस की जा रही है। यह बात तो तय है कि मौजूदा हालात में भारत अपनी सुरक्षा तैयारियों को लेकर किसी तरह की ढील नहीं दे सकता। 

थल सेनाध्यक्ष के बयान के निहितार्थ तब सामने आए जब द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि सितंबर 2021 और नवंबर 2022 के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर भारतीय और चीनी सैनिक कम से कम दो बार भिड़े हैं। इस पंद्रह महीने की अवधि के दौरान भारत ने चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए की निगरानी के उद्देश्य से कई गुप्त अभियान भी चलाए। दरअसल, ये झड़पें और ऑपरेशन पहले सार्वजनिक विमर्श में नहीं आए। 

पिछले दिनों पश्चिमी और मध्य सेना कमांड के एक कार्यक्रम में आयोजित अलंकरण समारोह के दौरान वीरता पुरस्कारों के लिये प्रशस्ति पत्र पढ़ने के दौरान इन तथ्यों का खुलासा हुआ। दरअसल, ये स्थितियां सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे द्वारा एलएसी को संवेदनशील बताये जाने की पुष्टि करती हैं। जिसका साफ निष्कर्ष यह भी है कि हम अपनी सुरक्षा तैयारियों से किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकते। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि क्षेत्र में अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को अंजाम देने के लिये चीन लगातार ताकत के बल पर अपने भू-भाग को विस्तार देने की कुत्सित कोशिश में लगा रहता है।

 भारत ही नहीं, अपने दर्जन भर पड़ोसियों से उसका लगातार सीमा विवाद चलता रहता है। यहां तक कि विवाद के ये मामले अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तक भी पहुंचे हैं। दरअसल, अब चाहे थल सीमा हो या समुद्री सीमा, चीन की कोशिश लगातार छोटे देशों को दबाने की होती है। इसी तरह वह भारत की सीमा पर अतिक्रमण करके सामरिक बढ़त लेने की फिराक में रहता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि भारत किसी भी उकसावे का सावधानीपूर्वक, लेकिन दृढ़ता से चीन को जवाब दे। 

यहां उल्लेखनीय है कि भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष से दो टूक शब्दों में कह दिया है कि जब तक सीमा पर कोई मान्य समाधान नहीं निकाला जाता, तब तक दोनों देशों के बीच अन्य संबंधों को सामान्य रूप से आगे बढ़ाने की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। 

यदि चीन भारत के साथ सामान्य आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने की उम्मीद करता है तो पहले सीमा पर स्थिति सामान्य होनी चाहिए। देखा जाए तो इस तरह वास्तविक नियंत्रण रेखा के विवादों के समाधान व द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने का मार्ग प्रशस्त करने की जिम्मेदारी बीजिंग पर ही है।

 बहरहाल, यह उचित ही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के चलते सीमा पर होने वाले टकराव और उस बाबत चलाए गए अभियानों की गोपनीयता बनी रहे। लेकिन एक बात तो तय है कि जून 2020 के गलवान संघर्ष के बाद हाल के वर्षों में सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव में किसी तरह की कमी नहीं आई है। पिछले साल, पेंटागन की एक रिपोर्ट में भी इस बात का दावा भी किया गया था कि चीन एलएसी पर तनाव को बढ़ाने वाली हरकतों को अंजाम दे रहा है।

 वर्ष 2022 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर डोकलाम के निकट चीन ने भूमिगत भंडारण सुविधाएं स्थापित की हैं। वहीं दूसरी ओर चीनी सेना की आवाजाही को गतिशील बनाने के लिये पैंगोंग झील पर दूसरा पुल बनाया गया है। वहीं सीमा के पास दोहरे उद्देश्य वाला हवाई अड्डा भी बनाया गया है। इतना ही नहीं सीमावर्ती इलाके में हेलीपैड बनाने के साथ ही सुरक्षा बलों की तैनाती को विस्तार देने के मकसद से बुनियादी ढांचे में वृद्धि की गई है। ऐसे में हम सुरक्षा तैयारियों को लेकर किसी भी तरह का समझौता नहीं कर सकते।