यह क्या हो गया

पहले दांपत्य संसार अंधेरे में और जीवन उजाले में होता था। अब दांपत्य उजाले में और जीवन अंधेरे में है। जिसे ढकना चाहिए उसे खुला और जिसे खुला रखना चाहिए उसे ढका जा रहा है। पहले मांसाहार से अधिक लोग दूर रहते थे, अब कुछ लोग ही उसकी माया से बच पा रहे हैं। पहले परिवार में कोई समस्या आती तो घर के बड़े-बुजुर्ग उसे दूर कर देते, अब पारिवारिक कलहों की समस्या बड़े-बुजुर्ग खुद बनते जा रहे हैं। पहले खाने के लिए कमाया जाता था, अब कंप्यूटर के आगे गद्दीदार कुर्सी पर बैठे कमाई हुई मोटी रकम से बढ़ती चर्बी को घटाने के लिए वाकिंग करना पड़ रहा है।

पहले लोग फल-फूल, दूध खा-पीकर बलवान रहा करते थे। संतानहीनता की कोई समस्या नहीं हुआ करती थी। किंतु अब दाम्पत्य जीवन चलाने के लिए दवाइयाँ खानी पड़ रही हैं। संतान के लिए फर्टिलिटी सेंटर के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। पहले सभी शरीर से हार्डवेयर और दिल से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हुआ करते थे। किंतु अब सभी शरीर से सॉफ्टवेयर और दिल से हार्डवेयर इंजीनियर हो गए हैं। पहले वैद्य घर-घर घूमकर इलाज करता था। सरदर्द के लिए झंडूबाम काफी था। अब सरदर्द का इलाज करने के लिए घर बार बेचना पड़ रहा है। पहले चोर घर में घूसकर चोरी करते थे। अब वे घर बैठे ही मोबाइल से चोरी कर रहे हैं।

पहले अनपढ़-अशिक्षित चोर उचक्के बना करते थे। अब पढ़े-लिखे चोरी करने के लिए नए-नए साइबर कोर्स कर रहे है। पहले उधारी करना सिर झुकाने वाला काम था। मन दुखी हो उठता था। अब उधारी करना स्टेटस की निशानी है। विश्वास न हो तो क्रेडिट कार्ड ही ले लें। आज क्रेडिट कार्ड रखने वाला अमीर और डेबिट कार्ड रखने वाला गरीब कहलाता है। पहले चीन से एक-दो वस्तुएँ ही आती थीं, अब तो लगता है कि हम चीन में ही रह रहे हैं। हर चीज़ में चीन ही छाया हुआ है। सोचिए यह हमारी उपलब्धि है या फिर हमारा दुर्भाग्य। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,  प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार