झूठ सा सच या ...

 “सच कहूं या झूठ बोलूँ  महाराज!” यह किसी फिल्म में भोले भाले माली का संवाद है।  यही संवाद आजकल हम सबके मन में भी है। सच कहें तो गए काम से, झूठ बोले तो गए अपने आत्माराम से। सवाल उठता है कि क्यों इस तरह पूछा जाए कि सच कहूं या झूठ बोलूं? क्यों इस तरह का विकल्प सामने आया है? हो सकता है ज्यादा लोग की चाहत हो झूठ की। या अधिकतर लोगों द्वारा झूठ बोला जाता है, यह भी एक कारण हो सकता है। चांद को दिखाकर माताएं गाया करती हैं बच्चों को खाना खिलाया करती हैं “चंदा मामा दूर के”।  न तो चंदा मामा पास आता है और न पके हुए पुए ही दे जाता है। कई संदर्भों में जिस तरह झूठ को प्रमोट किया जाता है, उतना सच को नहीं। 

 एक कहावत है हजार झूठ एक शादी। मतलब शादी की बुनियाद झूठ से पड़ती है और फिर झूठ का तो लंबा चौड़ा धारावाहिक बन जाता है वैवाहिक जीवन। पति और पत्नी एक दूसरे से बड़े प्यारे झूठ बोलते रहते हैं। सच कहा जाए तो यही उनके वैवाहिक बंधन की मजबूती है।  कहा जाता है सच्चाई आग सी होती है, उसे आप छिपा नहीं सकते। वह जला देती है। यह सच नहीं है - वह बोलने वालों को ऊपर से नीचे तक जला डालती है। यह भी कहते हैं कि झूठ बोलो तो ऐसा जैसे दीवार बना रहे हो। 

“सच कहूंगा। सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा।” कहते हुये पवित्र ग्रंथों को साक्षी मानकर कसम लिया जाता है। उस तरह शपथ लेने वाले अगर केवल सच कहते तो न्यायालयों में मुकदमे ही नहीं रहेंगे। सभी जानते हैं कि वह क्या कह रहा है। उन्हें ही नहीं आंखों पर पट्टी बांधे न्याय देवता को भी सब कुछ मालूम है। महाभारत युद्ध में कौरवों की सेना का सेनापति द्रोणाचार्य एक अद्भुत अद्वितीय योद्धा रहे। जब तक वे रहेंगे कौरवों को हराना संभव नहीं - यह बात कृष्ण अच्छी तरह जानते थे।  

इसलिए झूठ के सहारे द्रोण को हटाने की योजना बनाई और कभी झूठ न बोलने वाले युधिष्ठिर को बुलाकर उनके कानों में उपाय बताया। तुरंत बिना कुछ सोचे समझे धर्मराज युधिष्ठिर ने “अश्वत्थामा हतः” कहकर जोर से चिल्लाए और आवाज़ धीमी कर “कुंजरहः” कहा। मतलब झूठ बोले बिना, सच कहे बिना द्रोण को धोखा दिया गया। सच को छुपाना भी चूँकि झूठ बोलना ही है, इसलिए धर्मराज युधिष्ठिर ने असत्य का साथ दिया – यह कहा जा सकता है।  कुछ लोग तर्क भी देते हैं “हमेशा सच क्यों बोलें? जरूरत पड़ी तो झूठ बोला जा सकता है - ऐसा भगवान श्री कृष्ण ने ही कहा है। तुम क्या उनसे भी महान हो? ” इसका किसी के पास कोई उत्तर है?

सच को प्रमोट करने के लिए राजा हरिश्चंद्र के जीवन को उदाहरण स्वरूप दिखाते हैं। कितने भी दुख आयें, कितनी भी मुश्किलें हों,सच पर अड़े रहने की बात कहते हुए राजा हरिश्चंद्र की महानता का व्याख्यान करते हैं और दलीलें देते हैं कि सभी को सच बोलना चाहिए। राजा हरिश्चंद्र की कथा सुनने वालों को क्या लगता है सच कहा जाए तो आजीवन कष्ट झेलने पड़ेंगे इसके बदले अगर झूठ बोला जाए तो जीवन भर आराम से सुखमय जीवन बिता सकेंगे - यह शरारती विचार भी आ सकता है, इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 

 सच ही बोलना चाहिए बिल्कुल सत्य है। लेकिन कुछ लोग झूठ बोलते हुए, बहुत कम लोग सच बोलें तो दोनों के बीच संघर्ष होगा ही, कहीं क्यों?  सीता ने क्या किया? मारीच ने राम की आवाज में “हे लक्ष्मण! रक्षा करो” चिल्लाया। इतने बड़े दशरथ की बड़ी बहू ने भोलेपन से उसे राम की आवाज माना और लक्ष्मण से कहा “तुम्हारे भैया मुश्किल में हैं।  जाकर उन्हें बचाओ।” लक्ष्मण ने कहा “ यह राम की आवाज नहीं है माते! किसी मायावी  की माया है।” पर सीता नहीं मानी।  जब लक्ष्मण को पता चल गया कि वह झूठ है तो सीता को क्यों मालूम नहीं हुआ?  यही तो झूठ की शक्ति है, असत्य का पावर है। शायद इसलिए फिल्म के माली को संदेह हुआ कि सच कहा जाए या झूठ बोला जाए। 

डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखपटनम, आंध्र प्रदेश