कण कण की महिमा

मत समझो निर्जीव इन्हें ये सजीव से बढ़कर हैं 

अनुशासन अनुशीलन में सृष्टि के परिचायक हैं

सम्मान करो इनका,  ये प्रभु श्रीराम  की मूरत हैं 

इनके मन को परखो ये बिन मुस्कान की सूरत हैं


ये वायु और गर्मी बिन इनके जीवन प्राण कहां

ये सर्दी और वर्षा बिन इन भोजन को अन्न कहां

पत्थर और शिलाओं से शिल्पकार का जीवन है

मंदिर मस्जिद चर्च और इन बिन रहने को ठौर कहां


 रज पत्थर कपड़े लत्ते घंटियां कमण्डल की महिमा

यदि इनके चरण पखारोगे तो बढ़ जाएगी खुद गरिमा 

प्रकृति पुरुष को समझ गए तो हो जाए उद्धार तुम्हारा

रामलला कण कणहि विराजे उद्घोष कर रही‌ भारत मां


बच्चू लाल परमानंद दीक्षित

दबोहा भिण्ड मप्र