मत सुनों मेरे प्रश्नों को,,
मत उलझो मेरे तर्क-वितर्कों में,,
मत देखो मेरी आंखों की तरफ,,
मत दो मुझे,,अपना थोड़ा सा भी समय,,
एकतरफा खिसका दो
मेरी सारी की सारी शिकायतें,,
बस एक पल को ही
ज़रा सा ही सही,,
स्पर्श तो करो हथेलियों से अपनी
मेरी हथेलियों पर रखा
वो "अनमना सा हरापन" ,
और,,उकेर दो प्रेम से
मेरी हथेली पर
तुम्हारी उंगलियों के दस्तखत,,,
यकीनन, पल्लवित होने लगेगी
हमारे विश्वास की अमर बेल !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश