नया साल पुराना हाल

साल नया पर हाल पुराना

उम्मीदों का यह जाल सुहाना


किस किसको कोसें औ रोएं

बन गया है काल जमानाडा


बना है अंधेरा सुरंग  जीवन

किसको है यह हाल बताना


नई तरक्की के नाम पर हैं

उखाड़ रहे कंकाल पुराना


दिखाकर गुड़ मारते हैं ढेला 

और फिर अपने गाल बजाना


हैं बातों की ये वहमी इमारतें

झुग्गी में मकड़ जाल सजाना


कब तक खाएं फरेब औ धोखे

जरूरी है अब जंजाल हटाना


देकर झांसा सुनहरे कल की

खुद के घर टकसाल बनाना


हर बात पे बंटे आदम के जाए

वक्त पे सब अपनी खाल बचाना


डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)

9394290204