वक्त से मैं बाते कर रही थी ।
कुछ कह रही थी, कुछ सुन रही थी ।
मैंने पूछा उससे तू ठहरता क्यूँ नही,
तू किसी का होकर रहता क्यूँ नही ।
मुस्करा कर हौले से वक्त बोला,
मैं कल भी तेरा था ।
मैं आज भी तेरा हूँ।
बस तुझे मुझे जीना नही आया।
वक्त जो मिला ईर्ष्या बैर में गवाया।
मैं ठहरा था तेरे लिए,
कि कुछ पल तू जी ले।
कुछ हँसी के किस्से,
वक्त में कैद कर ले।
बेफिक्र होकर जीना तुझे आया नही।
बीत जाना मेरी फितरत थी,
मैं भी हाथ आया नही।
गरिमा राकेश 'गर्विता'
कोटा,राजस्थान