राम

राम-राम करते हो

तुम रावण बनने के

लायक भी नहीं।

ज्ञान-ज्ञान करते हो

तुम अज्ञानी बनने के

लायक भी नहीं।

ध्यान-ध्यान तुम करते हो

तुम ज्ञान के

लायक भी नहीं।

स्वयं को न जाना

न ही पहचाना कभी

फिर भी महाज्ञानी

बने फिरते हो।

राम तो कण-कण में रमते है

फिर भी तुम

क्षण-क्षण पाप कर्म

करते फिरते हो।


डॉ.राजीव डोगरा

पता-गांव जनयानकड़

कांगड़ा हिमाचल प्रदेश

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