स्पर्श की लिखावटें

न,,न,, मैंने कब कहा

लिखो मेरे लिए भी कोई कविता

जैसे कि कभी लिखीं होंगी 

अमृता-इमरोज ने 

एक-दूसरे के लिए,

उनकी बातें,,वो ही जानें !!


सुनो,,

मत ध्यान दो मेरे प्रश्नों की तरफ़,,

मत उलझो मेरे तर्क-वितर्कों में,,

मत देखो मेरी आंखों की तरफ,,

मत दो मुझे,,अपना थोड़ा सा भी समय,,

एकतरफा खिसका दो मेरी सारी शिकायतें,,


लेकिन ,एक पल को ही,,

ज़रा सा ही,,

स्पर्श तो करो उंगलियों से अपनी

मेरी हथेलियों पर रखा

वो "अनमना सा हरापन",

ताकि पल्लवित हो सके वहीं से

हमारे विश्वास की अमर बेल !!


यकीनन, महसूसती रहूंगी

उस स्पर्श को 

अपने ह्रदय पर ताउम्र

तुम्हारे अमिट दस्तखत की तरह ,,

क्योंकि स्पर्श की लिखावटें

समय के अवरोधों में भी कभी धुंधलाती नहीं !!

बोलो, करोगे न !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश