सफल भविष्य की निश्चिंतता

जिसने सितारों के साथ वक्त गुजारा नहीं,

धरा पर उलझता रहा बेवजह यूं ही।

शून्य और शिखर के अर्थ को कभी समझ पाया नहीं,

आधार और जीवन के स्तंभ को देख पाया नहीं।

व्याकुल है वो छद्म रचनाओं के कोलाहल में,

शेष और विशेष में विभेद कर पाया नहीं।

हो उठा वो व्यग्र यूं ही, था असाधारण सृष्टि में,

वैभव-विलास डूब गया यूं ही,

हो सचेत मूढ़ बन्धन के संबंधों में,

असफलताओं की स्याह कोठरी से

दूर सफलता की रोशनी देख पाया नहीं।

कूच कर गति से पथिक, बाधाओं के पथ पर 

समय किसी के लिए कभी रुक पाया नहीं 

अनिश्चितता के द्वार पर, सार्थक प्रयास

निष्फल कभी हो पाया नहीं।

सीमाओं से परे प्रखरता और सचेतता हो

आपके ढृढ़ निश्चय में ही 

सफल भविष्य की निश्चिंतता है।


-- अन्नू प्रिया,

कटिहार , बिहार