वैश्विक प्रीति
प्रभु राम सिया सँग आएँ।
नव भक्ति विधान बताएँ।।
समता शुभदा रच दें वे,
युग ज्ञान विराग सिखाएँ।
सिय का नव रूप निहारूँ,
वह श्रेयस 'धी' रच जाएँ।
रख चाहत से अति दूरी,
शुभ दर्शन नैन समाएँ।
अब प्राविधि नूतन आई,
प्रभु वैश्विक प्रीति जगाएँ ।
कुछ शब्द न नाद धरेंगे,
जन रश्मि लड़ी बन भाएँ।
मीरा भारती,
पटना बिहार।