हर युद्ध के बाद

जब-जब लिखी जानी चाहिए थी 

एक 'प्रेम-कविता' ,

हमने युद्ध ही रचे,,,

अफसोस..

हर युद्ध के बाद

ठहरे अवसादों के क्षण में ,

हमने, तब

कविता लिखने की सोची !!

जब-जब बो देने चाहिए थे

बारिशों के बीज,

हमने कंक्रीटों के जंगल उगाए ,,,

असमय झरते फूलों को देख

हमने, तब

कम होती बारिशों पर

सेमिनारों में बहस करने की सोची !! 


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश