"बटोही..."

मैं मुक्त हूं... मैं रिक्त हूं..., 

मैं रिक्त हूं... मैं मुक्त हूं...।

उम्र से भी लंबी राहों में..., 

चलने वाला बाट बटोही हूं ।।


मुझे दिन और रात एक जैसा लगता है !

रास्तों के मुलाकात एक जैसा लगता है !!


रास्ते पर चलना है 

रास्तों पर भी खाना 

रास्ते पर ही सो जाना 

रास्ते का फकीर......!


 हैरत में हूं... बेगैरत हूं..., 

मैं मुक्त हूं... मैं रिक्त हूं...!


कभी कोलाहल पूर्ण शहर अमंगल सुनता हूं !

कभी शून्यता के प्रखर प्रहर जंगल सुनता हूं !!


कभी अपरिचित से 

आस....सहानुभूति 

कभी अपनों से..... 

अपमान तिरस्कार..! 

किया हुआ... विरक्त हूं...!

मैं मुक्त हूं... मैं रिक्त हूं...!!


स्वरचित एवं मौलिक

मनोज शाह मानस

नारायण गांव,

नई दिल्ली 110028

manoj22shah@gmail.com