नवगीत कोहरे की चादर में....

कोहरे की चादर में

लिपटी सुबह शाम

सर्द रातों में कम्बल

में ठिठुरते हम आप...

फुटपाथ पर बेफिक्र

सोता मजदूर परिवार

शीत की ठिठुरण में

जन जीवन बेहाल....

क‌ई दिनों तक नहीं

सूर्य नमस्कार प्रणाम

धूप का एक टुकड़ा

दर्शन को हुआ लाचार....

रात भर बरस रही ओस

दिन धुंध में ही रहा बीत

सर्द हवाओं ने मचाया

रह-रहकर खूब उत्पात

खुशहाली भी पड़ी

खांसते खांसते

चारपाई पर आज बीमार....


लाल‌ बहादुर श्रीवास्तव

9425033960