चार लोग

गुप्ता जी की बिटिया छब्बीस पार कर चुकी थी। संविधान के हिसाब से वह शादी की उमर से आठ साल आगे चल रही थी। उसे इस  बात की कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन समाज में रहने वाले चार लोग इतने समाज सुधारक और जिम्मेदार होते हैं कि अपने घर को चूल्हें पर छोड़कर ऐसी ताका-झांकी करते हैं कि दूसरों के घर को जलने से बचाने में अपना सबसे बड़ा हित समझते हैं। 

यहीं से पहले कानाफूसी फिर आगे चलकर खुल्लम खुल्ला का ट्रेंड जोर पकड़ लेत है। चार में एक लड़की की ढलती उम्र पर ऐसे-ऐसे कमेंट करेंगे कि उसकी ढलती उम्र अपने साथ सुनामी ला रहा हो। दूसरे उसके आकार-ऊँचाई-लंबाई के साथ-साथ उसके पहनावे पर भद्दी-भद्दी टिप्पणियाँ करते हुए उसे लाज हया का गीता प्रवचन देंगे। तीसरा उसकी नौकरी को लेकर काम करने वाली जगह पर दो-चार के साथ टांका जोड़कर शादी न करने का शोधपरक कारण खोज निकालेंगे। अडवांस किस्म के पड़ोसी तो समाचार पत्र, टी.वी., मोबाइल आदि पर खोज करके लिव इन रिलेशन तक पहुँच जाते हैं। इस बहाने वे स्वयं को अपडेटेड पड़ोसी होने का ठप्पा लगवाने में गर्व की अनुभूति करते हैं। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार