श्री गरुड़ की कथा


गरुड़ गगनचर, सतयुग आगर, नित्य शोकहर,  स्तुति करते।

कश्यप ऋषिसुत, विनता सुद्युत,ऋजुसमअजगुत,जन कहते।।


दखिन तीर्थ हवि,प्रकटें खग छवि, धरते कर चवि, उड़ जाते।

खगश्री भगवन, हरि के वाहन, तरण वेग मन,  अति भाते।।

अरुण श्रापते, गरुड़ धारते, भक्ति मापते,  चित  सजते।टेक1


सुरपुर  जाते, अमिघट  लाते, प्रभु को भाते, भव्य  लगें।

अमित पराक्रम,मन है उपरम,भक्ति न है कम,अर्घ्य  जगें।

इंद्र आगमन,अहि खग भोजन,वर पा,मधुधन,वह तजते।टेक2


त्रेता अर्पण, प्रभु दुख भंजन, काटे बंधन, भ्रमित  हुए। 

प्रभु सर्वेश्वर, राम युगेश्वर, अहं अजग भर, दुखित हुए। 

वायस शरणम् ,राम सुचरितम्,ज्ञान शुभागम, हिय भरते।टेक 3


मीरा भारती।