इंसानियत

आज इंसान तो है पर इंसानियत नहीं

देखों बदल गई लोगों की फितरत कहीं

निरीह प्राणियों के प्रति संवेदना घटी

कुचलकर पहियों से गाड़ी आगे बढ़ी

अपने गांव को भूलकर कहां आ गये

बड़े बूढ़ों को छोड़कर शहर भा गये 

उपभोक्तावाद की संस्कृति छा गई

धन दौलत के पीछे दुनिया दौड़ रही

यहां दोगला चेहरा लेकर लोग जी रहे 

वो मुंह पर राम बगल में छुरी ले रहे

स्वार्थ सिद्धि में देखों सब कुछ हो रहा 

इंसानियत को कितना शर्मसार कर रहा

प्रेम के नाम पर एक दूजे धोखा दे रहे

बोटियों में काटकर टुकड़े फेंक रहे


स्वरचित एवं मौलिक

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश