चल संगी हसदेव बचाबो । महतारी के मान बढ़ाबो ।।
बिन एकर हे सबके मरना । सोंचव जल्दी का हे करना ।।
चार- चिरौंजी तेंदू मउहा । मिलथे संगी झउँहा- झउँहा ।।
जीव-जन्तु बर इही सहारा । कटत हवय हसदेव बिचारा ।।
डीह डोंगरी नदिया घाटी । बंजर होवत हावय माटी ।।
हे विकास के नाँव धराये । लोगन ला कइसे भरमाये ।।
लाख-लाख हे पेड़ कटावत । पूँजीपति मन मजा उड़ावत ।।
धरती हा सुसकत हे भारी । लोंचत हें लबरा बैपारी ।।
जल जंगल ले हे जिनगानी । देवय हम ला दाना पानी ।।
शुद्ध हवा कइसे मिल पाही । रुख राई हा जब कट जाही ।।
हाथी भलुवा घर-घर जाहीं । गाँव शहर मा रार मचाहीं ।।
उजरत हावय इँकर बसेरा । कोन मेर अब करहीं डेरा ।।
देख चलावत हावँय आरी । चुप बइठे हें सत्ताधारी ।।
भैरा कोंदा बनगे हावँय । पद पइसा के महिमा गावँय ।।
आज उजारत हावँय कोरा । ककरो झन गा करव अगोरा ।।
आघू आवव बहिनी-भाई । जल जंगल बर लड़ौ लड़ाई ।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
मो.नं.- 8966095681