परीक्षा

कठिन  परीक्षा  आज, करूँ  क्या  मन  घबराता |

शीश झुकाती नाथ, समझ नहिं कुछ अब आता ||

कर दो अब उद्धार,द्वार हम आये तेरे |

कैसे पाऊँ  पार, मिटे अब  कष्ट घनेरे ||


सारे  कष्ट  निवार,अजामिल  तुमने तारा |

लगा हृदय से दीन,सुदामा मन निज वारा ||

देख दशा गज ग्राह, हाथ जो तुमने थामा |

मेरा  हो   उद्धार  , रटूँ  मैं  श्यामा  श्यामा ||


कठिन समय को देख, समझ मन इतना पाया |

रखो हौसला  साथ, सकल  प्रभुवर  की माया ||

करना श्रम दिन रात, राह तुम सुगम बनाना |

स्वप्निल मानो बात,कहे  यह सकल जमाना ||


कवयित्री 

कल्पना भदौरिया"स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश