पराक्रम न्यास किरीट सजें सिर,देन सुभाष विमुक्ति महान।
हुए कृतकार्य परीक्षण आंग्ल,विलोक कुचक्र तजें भृति-भान।
महात्म कहें अगुआ उनको, मतभेद कुजोग उसूल प्रधान।
झुकें न कभी न रुका अवदान,"लहू कण दे कर लो नव प्रान।"
विवेक रहें गुरु योग विधान, भरें उर 'बंधु' उमंग सुहान।
विराग धरें वह हिंद भविष्य, अभेद हुए सब वीर सुजान।
लिखें खत भारत माँ निज मान,पढ़ें जब छात्र रचें नव गान।
विचार सजा रखते बहु मानक, स्वप्न गहें अमरत्व प्रमान।
मीरा भारती।