सपनों की उड़ान

सपनों की उड़ान लेकर

चले जिंदगी की राह में

रंग भरकर कल्पना का

कुछ पाने की चाह में

यथार्थ के ठोस धरातल पर

सपनें कुछ तो पूरे हो गए

हृदय के कोने में कुछ सपनें

मगर कुछ अधूरे रह गए

मुट्ठी भर रेत से रहे सपनें

जीवन पथ में सदा मेरे

बहुत थामा हमने उनको

फिसल गये रोकते रोकते

ख्वाबों के स्वप्निल संसार में

एक एक कर टूट गए

हजार कोशिशें करके देखी

फिर भी अधूरे रह गए

शूल आंचल में छुपाकर हमने

सुमन बांटे हमने हर कहीं

सबको अपना समझा हरपल

मगर कोई अपना हुआ नहीं

मतलब निकल गया तो अक्सर

वे तो पहचानते ही नहीं

सबको एक डोर में पिरोने के

मेरे सपनें अधूरे रह गए


स्वरचित एवं मौलिक

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश