"देशभर में अपने नाम का डंका बजे इसके लिए क्या करना होगा?"
"नाम मतलब अच्छा नाम या बदनामी?"
"अच्छे बुरे में क्या फर्क है?"
"किसी को जो अच्छा लगता है किसी दूसरे को बुरा लगेगा और कुछ लोग जिसे गलत मानते हैं तो कुछ लोगों को वही सही लगेगा।"
"ये सारे प्रवचन छोड़ो और बताओ नाम के लिए क्या करना होगा?"
"खिलाड़ी बनो। नाम कमाओ। पदक हासिल करो। फिर देखो तुम्हारी कीर्ति किस किस जगह लहराएगी।"
"इन सब के लिए पसीना बहाना होगा। मेहनत करनी होगी। सफल होना होगा। अपने से यह सब होगा?"
"फिर तो सेलिब्रिटी होना होगा। तब तो जनता के बीच घूमना फिरना भी मुश्किल होगा, इतना अधिक नाम कमाओगे। पैसों की भी बरसात होगी।"
"सेलिब्रेटी होने के लिए भी किस्मत का साथ होना चाहिए। कोई अचंभा होगा, तभी हम सेलिब्रिटी बन सकते हैं।"
"तो फिर बाबा का अवतार लेना होगा। जो नहीं है उसे ऐसा दिखाया जाए कि है। जनता आगे पीछे घूमेगी। दंडवत प्रणाम करेगी।"
"बाबा बनने के लिए जादूगरी चाहिए। बातों से लोगों को बरगलाने की प्रतिभा भी चाहिए।"
"अब बची केवल राजनीति। नेता का अवतार ही सर्वोत्तम होगा।"
"राजनीति में चमकने के लिए कुछ न भी करो तो ऐसा एहसास दिलाना होगा कि बहुत कुछ किया जा रहा है। पहले सब के पीछे घूमना होगा और सबको अपने पीछे घुमा सकने की निपुणता हासिल करनी होगी और यह आसानी से मिलने वाली नहीं है।"
"निराश न हो। राजनीति की नींव गुंडागिरी है। गुंडा बनकर शुरू करो तो अंत में जाकर राजनीति में नेता बनकर करोगे उभरोगे।"
"गुंडा बनना भी तो आसान नहीं।"
"राजनीति के जो नेता है वह इसी काम के लिए है। फिर भी तुम्हें यह संदेह क्यों हुआ?"
"बिना कारण के संदेह तो नहीं होगा न। उत्तर प्रदेश में पुलिस की कड़ी निगरानी में दो गुंडे सह माफिया सह नेताओं को मामूली गुंडों ने मार गिराया। क्या यह मामूली बात है?"
"सामान्य जन के लिए यह तो सामान्य बात नहीं है। पीछे आगे बड़े-बड़े रसूखदार नेताओं का आशीष हो तो सारा कुछ मामूली है।"
"लेकिन पुलिस को बताया जा रहा है कि वे नाम कमाने के लिए ऐसा किए हैं। फिर शक यह पैदा होता है कि क्या नाम के लिए ऐसा किया जा सकता है?"
"राजनीति के नेताओं के डीएनए में जिस तरह गुंडों के लक्षण पाए जाते हैं, ठीक उसी तरह पुलिस के खून में कवि, कहानीकार, कलाकारों की उपस्थिति जाहिर है। वे कुछ भी कह सकते हैं किसी भी मामले में।"
"राजनीति की पहली सीढ़ी गुंडागिरी है, यही ना!"
"गुंडागिरी में जो कमाई है, उसे संपत्ति का रूप देना हो तो नेताओं की शरण में जाना होगा।"
"नेता के भेस में व्यापारियों और धनिकों को डरा धमका कर लूटा नहीं जा सकता है न।"
"नेता बनने के बाद सीधे जनता के धन पर लूटपाट मचाना होगा।"
"क्या यह इतना आसान है?"
"जनता से वसूले गए करों के धन को सेंध लगाने के नए-नए उपाय ढूंढने होंगे।"
"पता चले तो जनtaa ke क्रोध का शिकार भी तो होना होगा।"
"इसीलिए तो जनता को हल्की फुल्की रेवड़ियां बांट कर उनके खुश होते वक्त थोक के भाव में लूट कर अपना घर भरते हैं।"
"सरकार का पैसा मतलब कितने तरह के कागज दस्तावेज होते हैं। लूटना या समेटना क्या इतना आसान है?"
"सरकारी राशि को विकास के कार्यक्रम का जामा पहना कर देखो। धन राशि घरों में आसानी से आ जाएगी। जनता को सच में जिन चीजों की जरूरत है उसे करोगे तो पैसे नहीं आएंगे और वोट भी नहीं पड़ेंगे। वोट चाहिए तो खरीदना होगा। खरीदने के लिए पैसा चाहिए। पैसा चाहिए तो सरकार से कोई ना कोई काम किया जाना चाहिए। वह जनता के काम में आए लेकिन नेताओं की जेबें भरें। मतलब खजाने के पैर होंगे वे सड़क पर आएं फिर उसे लेकर हिफाजत से तिजोरी में भरें और जायदाद बढ़ाएं।"
"खजाने की राशि सड़क पर कैसे आएगी?"
"जनकल्याण, सुविधाओं के नाम पर तुरंत प्रोजेक्ट, पुल, भवन, सड़कें, नाले आदि कागजों पर योजनाओं का रूप लें। योजनाओं की प्राण प्रतिष्ठा से पहले ही आवश्यकता से अधिक राशि बाहर आती है। फिर उनमें से कमीशन, परसेंटेज, हिस्से, बटवारे, रिश्वत जैसे नाना प्रकार के नाम देकर लूटना ही है। इस पर शुरुआत से सहारा देने वाले अधिकारी हैं तो जरूर अक्सर साथ देती है गुंडागिरी।"
"इसका मतलब है नेता बनने के बाद भी गुंडागिरी से नाता नहीं टूटेगा।"
"फिर क्या? गुंडा गिरी और राजनीति परस्पर आधारित व्यवसाय हैं। नेताजी ऊपर खादी पहनते हैं फिर भी अंदर का वह गुंडई चरित्र वैसा ही क्रूर बना रहता है। गुंडों के देखभाल अगर नेता सही ढंग से करते हैं तो गुंडे भी नेताओं की सुरक्षा भली-भांति करते हैं। चिपक कर पैदा होने वाले सियामी जुड़वों की तरह हैं नेता और गुंडे। अगर कोई मनमुटाव हुआ तो गुंडे, नेताओं का सारा कच्चा चिट्ठा जनता के सामने खोल देते हैं जिससे नेता की कुर्सी छिन जाती है। यह अलग बात है कि फिर गुंडे भी नेताओं द्वारा पुलिस की गोली से मर खप जाते हैं
डॉ0 टी0 महादेव राव
विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)