जाति की ख्याति

जातियों के भीड़ में हर जगह

नजर आ जाता है जाति,

जिसके साये में रहकर ही

लोग पाना चाहते हैं ख्याति,

मुंह सुख गया हो

और प्यास से तड़पने मरने की

जब आ चुकी हो नौबत

तब भी अपने से नीची माने जाने वाले

लोगों के हाथों से पानी पीने से

इंकार करते हुए देखा हूं लोगों को,

काश ऐसे लोग मर ही जाते,

क्यों इंसान को इंसान नहीं सुहाते,

एक तरीके से पैदा होते,

एक जैसे शरीर रखते,

एक जैसे जिंदगी का स्वाद चखते,

हर लम्हा एक सा गुजारते,

पर एक दूजे को देख

जाति की नजरों से निहारते,

चीथड़ों में पड़ा व्यक्ति भी

केवल जाति के कारण

कुलीन सा दिखने वाले को

देखता है हिराक़त की नजरों से,

मुस्कान छोड़ गाली छोड़ते हैं अधरों से,

ये किस तरह की समूह के लोग हैं,

वो जाति ही एकमात्र आधार है

नित अंगूठा काटने के लिए,

इसने अब तक नफरत ही दिए,

लोग क्यों इसे छोड़ना नहीं चाहते,

नफरतों की दीवार क्यों तोड़ना नहीं चाहते,

जातियता के प्रति ये राग द्वेष,

टुकड़ों में न बांट डाले देश,

ये कैसे मानव छोड़ मानवता

पूरा जीवन है बिताती,

कब मरेगी जाति और उसकी ख्याति।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग