भोले का साथी

बाज रही है मन की बांसुरी,

भोले-भोले गाए जा,

मिला है मानव का जीवन तो,

कर्म का पाठ पढ़ाए जा।

बाज रही है मन की ...

सत्य कभी छोटा नहीं होता,

झूठ तो कोरा कागज होता,

मन में जिसने प्रेम बसाया,

वो भोले का साथी होता।

बाज रही है मन की ...

बदला मौसम भोले के संग,

जीवन में नव रंग भर देता,

भोले-भोले जो करता है,

होले - होले वो हंसता है।

बाज रही है मन की ....

क्या खोना है क्या पाना है,

इसका ध्यान लगाए जा,

भोले का जो मिला संग तो,

भोले-भोले गाए जा।

बाज रही है मन की  ...

इसका लेना उसका देना,

जीवन यूं ही बीता जाए,

आस पराई क्यों करता है,

भोले से कर लेना-देना।

बाज रही है मन की ...

( 146 वां मनका )


कार्तिकेय कुमार त्रिपाठी 'राम'

गांधीनगर, इन्दौर,(म.प्र.)