ख़ाली हाथ आए हैं और पुण्य लेकर जाना है

अधिकतम लोग असफल मरते हैं। यह हो सकता है कि उन्होंने बड़ी सफलताएं पाई हों संसार में। यह हो सकता है कि उन्होंने बहुत यश और धन अर्जित किया हो। लेकिन फिर भी असफल मरते हैं, क्योंकि हाथ खाली होते हैं मरते वक्त। भिखारी ही खाली हाथ नहीं मरते, सम्राट भी खाली हाथ ही मरते हैं। तो फिर यह सारी जिंदगी का श्रम कहां गया? अगर सारे जीवन का श्रम भी संपदा न बन पाया और भीतर एक पूर्णता न ला पाया, तो क्या हम रेत पर महल बनाते रहे? या पानी पर लकीरें खींचते रहे? या सपने देखते रहे और समय गंवाते रहे? क्या है, इस दौड़ की सारी निष्फलता क्या है?

एक और छोटी कहानी मुझे स्मरण आती है।

एक महल के द्वार पर बहुत भीड़ लगी हुई थी। और भीड़ बढ़ती ही जा रही थी। और दोपहर से भीड़ बढ़नी शुरू हुई थी, अब सांझ होने आ गई, सारा गांव ही करीब करीब उस द्वार पर इकट्ठा हो गया था। क्या हो गया था उस द्वार पर राजमहल के? एक छोटी सी घटना हो गई थी। और घटना ऐसी बेबूझ थी कि जिसने भी सुना वह वहीं खड़ा होकर देखता रह गया। किसी की कुछ भी समझ में न आ रहा था। एक भिखारी सुबह—सुबह आया और उसने राजा के महल के सामने अपना भिक्षापात्र फैलाया। राजा ने कहा कि कुछ दे दो, अपने नौकरों को।

उस भिखारी ने कहा, एक शर्त पर लेता हूं। यह भिक्षापात्र उसी शर्त पर कोई चीज स्वीकार करता है जब यह वचन दिया जाए कि आप मेरे भिक्षापात्र को पूरा भर देंगे, तभी मैं कुछ लेता हूँ।

राजा ने कहा, यह कौन सी मुश्किल है! छोटा सा भिक्षापात्र है, पूरा भर देंगे! और अन्न से नहीं, स्वर्ण अशर्फियों से भर देंगे।

भिक्षुक ने कहा, और एक बार सोच लें, पीछे पछताना न पड़े। क्योंकि इस भिक्षापात्र को लेकर मैं और द्वारों पर भी गया हूं और न मालूम कितने लोगों ने यह वचन दिया था कि वे इसे पूरा भर देंगे। लेकिन वे इसे पूरा नहीं भर पाए और बाद में उन्हें क्षमा मांगनी पड़ी।

राजा हंसने लगा और उसने कहा कि यह छोटा सा भिक्षापात्र! उसने अपने मंत्रियों को कहा, स्वर्ण अशर्फियों से भर दो।

यही घटना हो गई थी, राजा स्वर्ण अशर्फियां डालता चला गया था, भिक्षापात्र कुछ ऐसा था कि भरता ही नहीं था। सारा गांव द्वार पर इकट्ठा हो गया था देखने। किसी की समझ में कुछ भी न पड़ता था कि क्या हो गया है! राजा का खजाना चुक गया। सांझ हो गई, सूरज ढलने लगा, लेकिन भिक्षा का पात्र खाली था। तब तो राजा भी घबड़ाया, गिर पड़ा पैरों पर उस भिक्षु के और बोला, क्या है इस पात्र में रहस्य? क्या है जादू? भरता क्यों नहीं?

उस भिखारी ने कहा, कोई जादू नहीं है, कोई रहस्य नहीं है, बड़ी सीधी सी बात है। एक मरघट से निकलता था, एक आदमी की खोपड़ी मिल गई, उससे ही मैंने भिक्षापात्र को बना लिया। और आदमी की खोपड़ी कभी भी किसी चीज से भरती नहीं है, इसलिए यह भी नहीं भरता है।

आदमी खाली हाथ जाता है, इसलिए नहीं कि खाली हाथ जाना जरूरी है, बल्कि आदमी की खोपड़ी में कहीं कुछ भूल है। इसलिए नहीं कि खाली हाथ जाना जीवन से कोई नियम है, कोई अनिवार्यता है। नहीं; जीवन से भरे हाथों भी जाया जा सकता है। और कुछ लोग गए हैं। और जो भी जाना चाहे वह भरे हाथों भी जा सकता है।लेकिन आदमी की खोपड़ी में कुछ भूल है।और इसलिए भरते हैं बहुत,भर नहीं पाता,हाथ खाली रह जाता है..!!

    इसलिए तो कहा गया है कि मनुष्य को अपना दिमाग़ सही चीज़ से भरना चाहिए। लेकिन लोग तो अपना दिमाग़ ,लालच, घृणा ,नफ़रत और दूसरों का बुरा करने की साज़िश में लगा देते हैं।

इस अनमोल जीवन को दूसरों का भला करने में और सत मार्ग पर चलने में लगाना चाहिए।

जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए।

जरूरी नहीं की आप किसी को धन दौलत दे करके पुण्य करो।

आप बुरे समय में शरीर से खड़े होकर के भी  पुण्य कमा सकते हैं। यही पुण्य लेकर हम साथ जा सकते हैं।

लेखिका- ऊषा शुक्ला

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