बदलेंगे हम.. मूल्य नहीं

“राजनीति के मूल्यों में गिरावट हुई है।”

“ बड़ी बात कह दी तुमने? राजनीति में या कहीं और मूल्य कभी भी नहीं गिरते। जिसका मूल्य या सिद्धान्त  उसी से चिपका और सुरक्षित रहता है। समय, मान्यताएं और परिस्थितियों के अनुसार मौजूद सिद्धांतों का भार वहन करने वालों का मूल्य बदलता रहता है, बस! लेकिन अचानक यह सब क्यों याद आया?”

“ मूल्यों की दुहाई देते व्यक्ति विरोधी पार्टी के साथ मिलकर, अपना पद बरकरार रखने और दस इंच अपनी ऊंचाई बढ़ाकर, कुछ भी कहते जाए - तो मान सम्मान को क्षति पहुंचेगी कि नहीं? राजनीति ने धन, मान, प्राण की रक्षा के लिए बहुत दूर तक जाया जाता है। है न? उस तरह के पुराने हिसाब कुछ सुधार रहे होंगे- ऐसा सोचें।  यह सब बाहरी तौर पर स्पष्ट न होने वाले अस्पष्ट युद्ध के भाग हैं। राजनीति में बहुत सी कार्यवाहियों का कारण पर्दे के पीछे के कार्य और रहस्य ही होते हैं। 

मन में कुछ और बाहर कुछ और तो होता ही है। किसी भी नेता का, किसी पार्टी में नाम, सम्मान, अभिनंदन, अपनापन और भारी इज्जत तब तक कायम रहते हैं जब तक वह इस पार्टी में है। बाहर हुआ मतलब शत्रु-वर्ग में चला गया। फिर काहे की आत्मीयता और काहे का सम्मान? तब तक सज्जन सा अपना साथी बाहर जाते ही भ्रष्टाचारी हो जाता है, शोषण करने वाला स्वार्थी बन जाता है – इन गलत निंदारोपण का मुकुट उसे सिर पर धरना होता है। उसे अपने पीछे आते आरोप, मुकदमे, गिरफ्तारियां झेलने होती हैं। यही  नहीं सारे देश में यही सब हो रहा है।”

“ठीक कहते हो कि सिद्धांतों और मूल्यों के बारे में बात करना बेकार है लेकिन हमारे पुराने नेता क्या जीवन भर मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध थे कि नहीं?”

“पुराने जमाने में रेल दुर्घटना में लोग मर गए तो मंत्री पद को त्यागने वाले महापुरुष रहा करते थे। यही बात अब आप कहो तो क्या जवाब मिलेगा जानते हो? इस तरह इस्तीफे देते फिरेंगे तो कोई राजनीतिक नेता देश में बचेगा ही नहीं कहते हुए व्यंग्य करेंगे। इस तरह अगर आज के जमाने में किसी मंत्री का इस्तीफा लेना है, तो कितनी बड़ी दुर्घटना होनी चाहिए, कितने जन प्राण गंवाने होंगे  कल्पना करो।”

“तो कहने का मतलब समय और परिस्थितियों के हिसाब से मूल्य या सिद्धांत बदल गए?”

“मूल्य या सिद्धांत जो हैं, वे अचल हैं, स्थिर  हैं, जबकि उसे ढोने वाला पदार्थ चल है चलायमान है। समय बदले, प्रदेश बदले, तब भी सिद्धांत या मूल्य वही रहता है। बस उसे देखने के नजरिए और  उसे अपनाने के तरीके में अंतर होता है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ा लिखा अफगानिस्तान का पूर्व मंत्री समय की मार से जर्मनी में साइकिल पर खाना पहुंचाने के काम में लगा हुआ है और पूरी शांति से जी रहा है। हमारे अपने देश में इसकी कल्पना भी क्या की जा सकती है? यहां एक सरपंच भी अपने जीवन काल में ऐसा नहीं करेगा लेकिन बुरे दिनों से गिरे अफगान के मंत्री की हालत ऐसी हो गई है। समय, मान और परिस्थितियों में अंतर का मतलब यही है।”

“लेकिन हम क्यों चाहे कि हमारे नेताओं को भी वैसे ही दिन देखने पडें।” 

“हमारे नेता जब जनता के दुख दर्द को देखते हैं तब भी दो सहानुभूति की बातें कहने में ही थक जाते होंगे। "

“सच कहते हो! हमारे नेताओं में ऐसी बातों के प्रति संवेदनशीलता कहां होती है? उन्हें तो यही सब पता है कि कितनी सरकारी जमीन कहां-कहां खाली पड़ी है? किस सड़क को खोदने से कितना मिलेगा? कौन सा प्रोजेक्ट हथियाने से पैसों की बारिश होगी? किस ठेके में सब वारे न्यारे किए जा सकेंगे? यही सब उनके ज्ञान भंडार के मोती हैं। इतने ज्ञानी हैं तभी तो हर समस्या का समाधान वह चुटकियों में बता देते हैं।

 ‘छोटे कपड़ों की वजह से बलात्कार हो रहे हैं’,  ‘रात के समय लड़कियों को बाहर क्या काम है’ जैसे सिद्धांतों को प्रतिपादित करते हैं और इसे ही नीति और रीति- रिवाज की संज्ञा देते हैं। इसलिए राजनीति में मूल्य जैसे ब्रह्मपदार्थ की खोज करने का आप कष्ट न उठाएं।  कोरोना कहां से आया, यही खोज करने के लिए काफी कष्ट झेल  रहे लोग, मूल्यों को खोजने कहां जाएंगे? क्या करेंगे?”

 डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम 530016