इतनी सुंदर भाव भंगिमा अद्भुत रुप संवारा है

इतनी सुंदर भाव भंगिमा अद्भुत रुप संवारा है,

प्रकृति ने कोमल हाथों से तेरा रुप निखारा है,

है दीप्त किया रवि ने तेरे नैनो की ज्योति,

उतरती गर कोई अप्सरा तो तेरे जैसी ही होती।


बातों में अलग सरलता है,मन तेरी ओर मचलता है,

तू मात कर रही शशि की शोभा, तूझे देख देख ये जलता है 

है चांदनी धवल रात में अपनी आखिर यूं आभा खोती

उतरती गर कोई अप्सरा तो तेरे जैसी ही होती।


कंधो पर कुटुंब का भार लिया,तो जन जन को ही तार दिया,

हंसते हंसाते ही परिजन को , तूने पुष्पित पल्लवित किया मन को,

है श्वेत वर्ण और श्रृंगार प्रबल रत्नों में तुम कोई बेशकीमती मोती,

उतरती गर कोई अप्सरा तो तेरे जैसी ही होती।


बच्चो के लालन पालन में , कई खुशियां लाई आंगन में

परिवार को यूं उपहार दिया , नया नवीन संसार दिया

तू खुद में सौम्य और श्रेष्ठ सदा, हमसे तेरी उपमा भी नहीं होती

उतरती गर कोई अप्सरा तो तेरे जैसी ही होती।


 – अमित पाठक शाकद्वीपी