जिस चाँद पर लगा हो दाग
उजड़ चूका हो जब हर बाग
दूजा चाँद कहां से मिल पाये
बाग मे फूल कैसे खिल पाये
घायल हो चूके सारे अरमान
बिखर चुके जब सारे मुकाम
दिल सुकून भी अब कैसे पाये
बाग मे फूल कैसे खिल पाये
उजड़ी धरा उजड़ा हो अगन
लोग स्वार्थ मे हो रहें है मगन
परहित मे कदम कौन उठाये
बाग मे फूल कैसे खिल पाये
आओ कुछ तो अब जतन करें
बिगड़ी संवरे कुछ तो यतन करें
बागो मे फिर से कली मुस्कुराये
बाग मे नवीन फूल खिल पाये
रचनाकार
प्रमेशदीप मानिकपुरी
आमाचानी धमतरी छ ग
9907126431