आओ बीमारी खरीदें

लोगों के खराब स्वास्थ्य के लिए मिलावटी धंधे वालों को हम गालियां देते हैं, कोंसते  हैं, लेकिन दैनिक जरूरतों की चीजों के दामों को काबू में रखने की अद्भुत क्षमता उन्हीं मिलावटबाजों में होती है।  महान जन-नेता, नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली सरकार ही नहीं कर पाई महंगाई पर काबू, तो इन मिलावटबाजों से क्या होगा - यही सोच रहे हैं न आप? हमारे केंद्रीय कृषि मंत्री ने अपने बेशकीमती संदेश में आपके संदेह की  निवृत्ति कर दी है।  उनका कहना है- “सरसों तेल की कीमतें बढ़ी हैं, सच है।

 लेकिन कारण है हमने मिलावटी तेलों को बाजार में आने नहीं दिया, इसलिए कीमतें बढ़ी हैं। आप तो जानते ही हैं कि गुणवत्ता वाले तेलों का अधिक दाम होना सहज है।” यह तो अच्छा हुआ गुणवत्ता की बात केवल तेलों तक सीमित रखा उन्होंने।  अगर यही फार्मूला चाँवल, दाल, मिर्ची में हो रही मिलावट के बारे में कहकर और भी बढ़ी हुई दामों का कोडा पीटते तो क्या होता?  सामान्य जनों पर इतनी दया दिखाने वाले शासकों को तो शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया जाना चाहिए।

 कीमतें आसमान छू रही हैं सभी को मालूम है।  सिंडिकेट लुटेरों के लूट पर सरकारी करों के कोड़े मिलकर अंत में सामान्य जनों की खून पसीने की कमाई लूट रहे हैं, यह बात भी  सभी जानते हैं।  इसके बावजूद आंखें मूंदे दूध पीती बिल्ली की तरह सिद्धांतों की खोज करने वालों को आप क्या कहेंगे? आधुनिक भारत में सच्चे नेता कहलाएंगे।  जिन महान लोगों को अच्छी गुणवत्ता वाली चीजें सस्ते में मुहैया कराना चाहिए, अगर वही मिलावटें हटाने पर कीमतें बढ़ेंगी का सिद्धांत प्रतिपादित करें तो उन्हें जनकल्याण के समर्थ पालन को नई दिशा देने वाले कहेंगे न बोलिए?  

जैसा करेगा वैसा भरेगा सिद्धांत पर आंखें मूंद वोट देने वाले जनता को उसका दुष्परिणाम तो भुगतना ही होगा।  ऐसे में केवल सुनने के अलावा जनता कर भी क्या सकती है? मंत्री जी की बेसिर पैर की बातें तो बातें एक और मंत्री महोदय ने इन मिलावटबाजों के विराट रूप के दर्शन भी करा दिए। एक और केंद्रीय मंत्री  बेहद दुखी होते हुए कह रहे थे – “मिलावटी भोजन से हो रहे रोगों के कारण देश प्रतिवर्ष 1.09 लाख करोड रुपए खो रहा है।  2030 के अंत तक यह आंकड़ा 15 से 18 लाख करोड़ हो जाएगी।” मतलब इस तरह सामाजिक मिलावटी महानों की करतूतें कम नहीं होंगी बल्कि बढ़ेंगी  ही यही कहना है न मंत्री महोदय का।  

अर्थ है कि वे मिलावट करते रहेंगे और शासक वर्ग आंखें मूँदे  इस तमाशे को देखता रहेगा।  शायद यही तो अर्थ हुआ मंत्री महोदय की महान बातों का,  वरना वे कह सकते थे कि मिलावट करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। उन्हें जेल में भरेंगे।  इस पर हम कड़ाई से काम करेंगे।  लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा।  उनके कहने का अंदरूनी मतलब है कि  महंगाई की मार खाते हुए उसके साथ भी जीवन बिताना होगा।  ऐसे अनुगृहीत करने वाले भाषणबाज  नेताओं की भीड़ से भरे भारत में समस्याओं का समाधान तो होने से रहा।  ऊपर से भाषण मुफ्त।

निष्क्रिय नेताओं के इस युग में मिलावटी लोगों के हाथ पैर बड़ी सक्रियता से काम कर रहे हैं। घी से लेकर तेल तक,  दालों से लेकर हल्दी तक कितनी मिलावट है कि कहना पड़ेगा कि मिलावट के लिए कुछ भी चलेगा कोई परहेज नहीं। यह कोई गली मोहल्ले का धंधा नहीं,  बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इसी कुत्सित बुद्धि के चलते मिलावट को प्रोत्साहित कर रही हैं। बड़ी-बड़ी संस्थाएं शहद में शक्कर का सिरप मिलाकर ऐसा मिलावट कर रही हैं कि बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाओं में भी पकड़ा न जा सके। काफी समय पहले ही सभी जन को ज्ञान हो चुका है कि बाजार में मिलने वाली 28% वस्तुओं में मिलावट भरा हुआ है। 

जनता बीमार पड़े तो पड़े। उनके खजाने धन से भर जाए बस। ऐसे लोगों की वकालत करने वाले एक वकील साहब पिछले दिनों बहुत बुरे फंसे। इन मिलावट बाजों को जमानत दिलवाने जब उच्चतम न्यायालय गए, तो न्यायाधीश ने उन्हें एक “बंपर ऑफर” दिया- “आपके आपके मुवक्किल को जमानत दी जाएगी, बशर्ते आप या आपके परिवार का कोई एक सदस्य इन लोगों द्वारा बेची जा रही चीजें खाएं।” फिर क्या था वकील साहब की जान पर बन आई।  बिना कुछ कहे जमानत आवेदन वापस लिया उन्होंने। 

उसके कुछ दिन पहले इसी तरह का एक और मुकद्दमा उच्चतम न्यायालय के सामने आया । उन मिलावट-मास्टरों  के वकील ने बड़े ही नम्र होकर दलील दी – “महाशय! इस तथाकथित मिलावटी घी का उपयोग केवल मंदिरों में दिए जलाने के लिए किया जा रहा है, चूँकि कोई इसका सेवन नहीं कर रहा है, इसलिए इन्हें जमानत दी जाए।” न्याय पीठ ने उनसे पूछा –“बहुत खूब! आप के मुवक्किल ने तो चिली सॉस में भी मिलावट की है।  क्या उससे भगवान का आप अभिषेक करते हैं और लोग उसे खाते नहीं है?” 

और उनकी सारी दलीलों को दरकिनार कर दिया। मिलावटी धंधे वालों को जो ऐसा करते हैं और पैसा कमाते हैं, जमानत न देने का न्यायालय निर्णय प्रशंसनीय है। लेकिन ऐसे लोग पहले गिरफ्तार तो हों, तभी न कानूनन उन पर कार्रवाई की जा सकेगी, जो कि नितांत असंभव लगता है।  वरना सरकार जैसे खानापूर्ति के लिए जांचों से, नाम के वास्ते मुकदमों से अपनी शैली में जनता के स्वास्थ्य की रक्षा कर ही रही है, क्या वह काफी नहीं?

डॉ0 टी0 महादेव राव

अक्कय्यापालएम, विशाखापटनम 530016